Sarso Prices :

सरसों उत्पादक किसानों की मुसीबतों से दूर करने हेतु सरकार को आवश्यक कदम उठाना जरुरी है। चालू रबी सीजन (2022-23) के लिए केन्द्र सरकार ने सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाकर 5450 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित कर दिया गया है।
जो पिछले साल के मुताबित भाव 5050 रुपए प्रति क्विंटल से 400 रुपए सिर्फ ज्यादा है। लेकिन देश की अधिकांश प्रमुख थोक मंडियों में इसका भाव घटकर 5000 रुपए प्रति क्विंटल से भी निचे आ गया है। कुछ मंडियों में तो दाम 4500 से 4700 रुपए प्रति क्विंटल रह गया है। इससे ऊंची कीमत पाने की किसानों की आशा अब निराशा में बदल गई है।
सरसों में गिरावट सरकार की नीति का परिणाम

उद्योग व्यापार क्षेत्र के परिजोकों का कहना है कि सरसों के दाम में पिछले साल के मुकाबले इस बार गिरावट आने का प्रमुख कारण सरकार की नीतियों का असर है। जैसे की घरेलू बाजार में तिलहन तेल का भाव ऊंचा और तेज होता जा रहा है।
तब सरकार खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में भारी कटौती कर देती है और कीमत नीचे रहने पर सीमा शुल्क में बढ़ोतरी करती है। लेकिन इस बार उल्टा हो रहा है। सरसों और इसके तेल का दामों में भरी गिरावट आई है।
सरकार से खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने की मांग

उत्पादक एवं उद्योग-व्यापार संगठनों द्वारा सरकार से खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने की मांग की जा रही है। और खासकर आरबीडी पामोलीन के आयात पर भारी-भरकम सीमा शुल्क लगाने या आयात को रोकने का ठोस आग्रह भी किया जा रहा है।
लेकिन इस पर ध्यान देने के बजाए सरकार ने क्रूड सोयाबीन तेल एवं सूरजमुखी तेल के आयात पर बचे-खुचे सीमा शुल्क को भी समाप्त कर दिया है। हालांकि सरकार ने अपनी एजेंसी नैफेड को किसानों से कम मूल्य पर विशाल मात्र में सरसों की खरीद करने का आदेश दिया है।
मगर यह एजेंसी धीमी मात्रा में इसकी खरीद कर रही है। इससे बाजार भाव पर बहुत ज्यादा असर पड़ रहा है और उसमें नरमी का माहौल बना हुआ है।
एक अग्रणी संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सी) सरकार को पहले ही बता दिया है कि यदि सरसों के दाम में बढ़ोत्तरी नहीं हुई तो आगामी रबी सीजन में इस महत्पूर्ण तिलहन फसल की खेती के प्रति किसानों का उत्साह खत्म हो सकता है।
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